मैथिली

मैथिली

मैथिली : साहित्य संविधानक

मैथिली : साहित्य अकादेमीसँ संविधानक अष्टम सूची धरि

भारत सरकार विभिन्‍न भारतीय भाषाक उत्थान तथा ओकरा बीच मे सम्बन्ध स्थापित कऽ भारतीय एकता एवं अखंडताकेँ सुदृढ़ करबाक उद्देश्यसँ गत १९५४ मे नई-दिल्लीमे एक गोट केन्द्रीय साहित्य अकादेमीक स्थापना कयलक । एकर पाछाँ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एवं पं. जवाहरलाल नेहरुक प्रेरणा, चिंतन ओ दर्शन छलनि । तत्कालीन प्रधानमंत्री ओकर स्थापना कालसँ मृत्यु समयधरि स्वयं एकर अध्यक्ष रहलाह ।

प्रारंभमे भारतीय संविधानक अष्टम अनुसूचीमे परिगणित चौदह गोट भारतीय भाषाकेँ एहि संस्थामे सम्मिलित कयल गेल छल । बादमे पं. नेहरु ओ डॉ. राधाकृष्णनक विचारसँ ओहिमे अंगरेजीकेँ स्वतः शामिल कयल गेलैक । सिंधी भाषा अकादेमीक सोलहम भाषाक रुपमे मान्यता प्राप्त कयलक । जाहि समय मे सिंधी अकादेमीक स्थान पओलक, तखन श्रीकृष्णा कृपलनि एक सिंधी, ओकर सचिव छलाह । सिंधीक बाद मैथिली भाषा-भाषी अपन भाषाकेँ साहित्य अकादेमी द्वारा मान्यता प्राप्त करयबाक लेल स्वाभाविक रुपसँ प्रेरित एवं सक्रिय भऽ गेलाह । कोनो आधार पर मैथिली सिधीसँ बहुत अधिक ओहि स्थानकेँ प्राप्त करबाक अधिकारी छल ।

ओहि समयमे डॉ. जयकान्त मिश्र साहित्य अकोदमीक साधारण परिषदमे विश्‍वविद्यालय क्षेत्र सँ सदस्य छलाह ।

डॉ. श्री जयकान्त मिश्रक प्रयास ओ अथक परिश्रमसँ नई दिल्ली मे मैथिली-पुस्तक प्रदर्शनीक एक गोट आयोजन १९६३ ई. मे भेल । एहि कार्यमे तत्कालीन लोकसभाक सदस्य आ महान मातृभाषा प्रेमी यमुना प्रसाद मंडल तथा तत्कालीन संचारमंत्री श्री सत्यनारायण सिंहक पूर्ण सहयोग डॉ. मिश्रकेँ भेटलनि । आनठामक अतिरिक्‍त पटना कॉलेजक पुस्तकालयसँ मैथिलीक प्राचीन ओ अमूल्य पुस्तकसब प्रदर्शनीक लेल उपलब्ध कराओल गेलैक । ओहि अवसर पर मैथिलीक एक गोट उच्चस्तरीय कवि सम्मेलन सेहो आयोजित छलैक, जाहिमे मैथिलीक सब प्रधान एवं लोकप्रिय कवि सम्मिलित भेल छलाह । कविलोकनिमे प्रो. हरिमोहन झा आ राघवाचार्यक नाम विशेषरुपसँ उल्लेखनीय अछि । हरिमोहन बाबूक ‘माछ’ कविता जखन पं. नेहरु नहि बुझि सकलथिन तँ बगलमे बैसल मिथिलाक प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता आ भारत सरकारक मंत्री सत्यनारायण सिंह हुनका इ बुझेलखिन । राघवाचार्यक वीर रसक कविता ‘भारत-चीन युद्ध ‘क पृष्ठभूमिमे पं. नेहरुकेँ बहुत नीक लगलनि ।

मैथिली पुस्तक प्रदर्शनीक उद्‍घाटन करैत पं. जवाहर लाल नेहरु बजलाह जे मैथिली बहुत प्राचीन समयसँ आ एखनहुँ अपना क्षेत्रक लोकक मध्य एक गोट जीवित भाषा अछि।

एकर बादे साहित्य अकादेमीक ध्यान मैथिली भाषा दिस विशेष रुपसँ आकृष्ट भेलैक । १९६४ ई.क मार्च मे प्रधानमंत्रीक अस्वस्थताक कारणसँ, उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैनक अध्यक्षतामे साहित्य अकादेमीक सामान्य परिषद्‍क बैसकमे मैथिलीकेँ अकादेमीक भाषा-सूचीमे सम्मिलित करबाक सम्बन्धमे एक गोट प्रस्ताव आयल । ओहि प्रस्तावक प्रवल समर्थक छलाह डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी, डॉ. चिंतामणि देशमुख, डॉ. हरेकृष्ण मेहताव आ प्रो. हुमायूँ कबीर सदृश विद्वान एवं प्रख्यात विशेषज्ञ लोकनि । ई सभ गोटे ओहि समयक साहित्य अकादेमीक साधारण परिषद्‍क सदस्य छलाह । बैसकमे मैथिलीकेँ आंशिक मान्यता देल गेलैक तथा पूर्ण मान्यता प्रदान करबाक लेल सर्वश्री डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी, डॉ. सुकुमार सेन, डॉ. एस. एम. कत्रे, डॉ. सुभद्र झा आ डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदीक एक गोट उप-समिति सिद्धांत निश्‍चित करबाक हेतु संगठित कयल गेलैक जे ३१ अगस्त १९६४ ई. धरि उक्‍त्त समितिक रिपोर्टक अनुसार मैथिलीक पूर्ण मान्यताक सम्बन्धमे घोषणा कयल जायत, मुदा एहि बीच मे अकादेमी अनुवाद कार्य, प्रकाशन ओ अनुदान आदिक व्यवस्था करैत रहत ।

उक्‍त उप-समिति अगस्त धरि नहि बैसि सकल । हमरालोकनिक दुर्भाग्यसँ पं. जवाहरलाल नेहरु मई १९६४ ई. मे अपन अनन्‍त-यात्रापर विदा भऽ गेलाह । परञ्च २५ सितम्बर १९६४ ई. केँ ओहि उप-समितिक बैसक, नई-दिल्ली मे अकादेमीक मुख्यालय रवीन्द्र-भवन मे आयोजित भेलैक, जाहिमे डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदीकेँ छोड़ि अन्य चारु सदस्य उपस्थित छलाह आओर डॉ. जयकान्त मिश्रकेँ मैथिलीक पक्षमे तथ्य उपस्थित करबाक लेल विशेष रुपसँ आमंत्रित कयल गेल छलनि । अस्तु २६ सितम्बर १९६४ ई. केँ साहित्य अकादेमीक साधारण परिषद्‍क बैसक भेलैक । उपसमितिक सर्वसम्मति सँ मैथिलीक पक्षमे रिपोर्ट प्रेषित कयल गेलैक आ परिषद ओकरा पास कऽ देलकैक । एहि बैसकक अवसर पर हमरालोकनि अकादेमीक कार्यालय मे उपस्थित रही । ओतय उपसमितिक सदस्य लोकनि कहलनि जे उपसमिति सर्वसम्मतिसँ साहित्य अकादेमी द्वारा मैथिली केँ मान्यता देबाक हेतु निर्णय देलक अछि । साधारण परिषद्‌ मैथिलीकेँ सतरहम भाषाक रुपमे मान्यता देबाक घोषणा कयलक । १९६५ ई. सँ मैथिली अकादेमीक भाषा-सूचीमे सम्मिलित भऽ गेल तथा १९६६ ई. सँ मैथिलीक पोथी पर पुरस्कार भेटब प्रारंभ भऽ गेलैक । साहित्य अकादेमीक मैथिलीक प्रथम प्रतिनिधिक रुपमे प्रो. रमानाथ झा सदस्य मनोनीत कयल गेलाह ।

तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीक सरकार मे श्रीमती इंदिरा गांधी सूचना एवं प्रसारण मंत्री छलीह । हुनक सचिव छलाह श्री आदित्य नाथ आई. सी. एस.।अकादेमीमे मैथिलीकेँ स्थान दियेबामे हुनक सहयोग स्तुत्य अछि । सत्यनारायण सिंह तथा तत्कालीन सांसद यमुना प्रसाद मंडलकेँ बहुत अधिक श्रेय छनि एहि कार्यक लेल।

हमरालोकनिकेँ ओहि अवसरमे एके गोट दुर्भाग्य छल जे पं. नेहरु जीवित नहि छलाह । ओ यदि किछुओ आओर वर्षधरि जीवित रहितथि तँ मैथिलीकेँ संविधानक अष्टम अनुसूची मे सम्मिलित करेबाक लेल एतेक द्रविड़ प्राणयाम हमरालोकनि केँ प्रायः नहि करय पड़ैत ।

साहित्य अमादेमीमे सम्मिलित भेलाक उपरान्त मैथिली भाषाकेँ भारतीय संविधानक अष्टम अनुसूचीमे शामिल हेबाक आन्दोलन एवं मांग जोर पकड़ल । केन्द्रीय सरकारमे एहि लेल दूगोट शर्त्त छल । प्रथम छल जे ओहि भाषाकेँ साहित्य अकादेमी मे स्थान प्राप्त रहैक आ दोसर जे ओ भाषा अपन प्रादेशिक सरकार द्वारा राजभाषा बनबाक सम्मान प्राप्त कयने हो । मैथिली दोसर शर्त्तकेँ पूर्ति नहि करैत छल । परञ्च ई केवल विभिन्‍न भारतीय सरकारक एक गोट एहन शर्त उपस्थित कयल छलैक जे पूर्णरुपेण निरर्थक छल । संस्कृत कोनो प्रदेशक राजभाषा नहि छल, मुदा ओ संविधानक अनुसूचीमे आरंभेसँ सम्मिलित अछि । ओतबे नहि, सिंधी भारतक गणराज्यक कोनो प्रदेशक राजभाषा बिना बननहि संविधानक अनुसूचीमे स्थान पाबि गेल ।

मैथिलीकेँ निष्पक्ष रुपसँ यदि देखल जाइक तँ किछु आंगुरपर गनैवला भाषाकेँ छोड़ि अन्य सब ओहि भाषासँ, जकरा संविधान मे स्थान छ्लैक, मैथिली अपन व्यापकता, जीवन्तता, गौरवशाली साहित्यिक परम्परा, विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयमे एम. ए. आ पीएच. डी. स्तर धरि अध्ययन-अध्यापनक कारणे संविधानमे स्थान पयबाक लेल अधिक अधिकारी छल । राष्ट्रभाषा हिन्दीक खड़ी बोलीक इतिहास एक-सवा सए वर्षसँ अधिक प्राचीन नहि छैक, जखन कि मैथिली भाषा ओ साहित्यक इतिहास कमसँ कम एक हजार वर्ष प्राचीन अवश्य छैक । सम्पूर्ण उत्तर भारतीय भाषा मे मैथिलीक गद्य-ग्रंथ वर्णरत्नाकर गद्यक प्राचीनतम ग्रन्थ अछि आओर विद्यापतिक रचना सेहो छौ सए वर्ष पुरान अछि । मैथिली केँ प्राचीन, समृद्ध आ साहित्यिक परम्परा रहितहुँ कांग्रेस सरकार कतोक वर्षधरि मैथिली भाषाक प्रति सौतिनियाँ डाह रखने रहल ।

ज्ञातव्य जे संविधानक अष्टम अनुसूची मे प्रारंभ मे चौदह गोट भारतीय भाषाकेँ सम्मिलित कयल गेल छल । १९६७ ई. मे एकैसम संविधान संशोधन द्वारा सिंधीकेँ सम्मिलित कयल गेलैक तथा १९९२ ई. मे कोंकणी, मणिपुरी एवं नेपाली अठहतरम संशोधन द्वारा संविधानमे सम्मिलित भेल । एहि संशोधनक लेल तीन सांसदक एकगोट समितिक निर्माण भेल छलैक, जकरा कहल गेल रहैक जे जाहि भाषा सबकेँ संविधानमे स्थान भेटबाक चाही, ताही लेल रिपोर्ट दिअए । ओहि समितिमे मधुबनी जिलाक एक गोट सांसद सेहो सदस्य रुपमे छलाह । ओ ओहि समितिमे मैथिलीकेँ संवैधानिक मान्यताक विरोध कयने रहथि ।

हाल धरि कतोक राजनीतिक नेता मैथिलीक पक्षमे मुहँ नहि खोलैत छलाह, तकर कारण छल जे हुनका अपन राजनीतिक दलक डर रहैत छल । मैथिलीक नाम पर कम्युनिस्ट पार्टी यात्रीजी पर अनुशासनात्मक कारवाई करबाक निर्णय कयने छल । पं. ताराकान्त झा स्वयं मैथिली आ मिथिलाक नाम पर भारतीय जनता पार्टी सँ निष्कासित कएल गेलाह, जखन कि हुनका बिहारक भारतीय जनता पार्टीक अध्यक्ष रहबाक समयमे ओ पार्टी मैथिलीक पक्षमे प्रस्ताव पारित कयने छल । ई बात अवश्य जे जखन हालहिमे ताराबाबूकेँ पुनः अपन दल मे लेल गेलनि तँ ओ अपन एहि शर्त केँ रखलनि जे ओ मैथिली एवं मिथिलाक लेल कार्य करैत रहताह । से ओ कऽ रहल छथि ।

मिथिलांचल विकास मंचक माध्यमसँ २७ लाख मैथिली भाषीक हस्ताक्षर एकत्रितकऽ हमरालोकनि २००० ई. क मई मे नई-दिल्ली गेल रही आओर पन्द्रह गोटेक एकगोट प्रतिनिधिमंडल हस्ताक्षरकेँ १२ मई केँ राष्ट्रपति केँ समर्पित कयलकनि । ओकर बादेसँ भारत सरकार मे मैथिलीकेँ संविधानक अष्टम अनुसूचीमे सम्मिलित करबापर विचार विमर्श होमय लगलैक ।

सोनिया गांधी एक खेप अपन पार्टीक सांसद श्रीमती राजो सिहकेँ पत्र लिखने रहथिन जे ओ मैथिलीक प्रश्नकेँ समय अयला पर ओ उठौतीइ आ ओहि लेल प्रयास करतीह । एहिबेर पं. ताराकान्त झाक अतिरिक्त डॉ सी. पी. ठाकुर ई यश लेलनि जे दू-दू खेप भारत सरकार मे मंत्री रहैत मैथिलीकेँ संविधान मे स्थानक लेल प्रतिनिधिमंडलक नेतृत्व कयलनि आ बाद के संसदक अधिवेशनक अन्तिम दिनमे प्रधानमंत्री तथा उपप्रधानमंत्रीसँ भेटकऽ डोगरी, संथाली आ बोडोक संग मैथिली भाषाकेँ संवैधानिक सएम संशोधनक विधेयकमे जोड़बकेँ सुनिश्‍चित कयलनि । मैथिलीक सम्बन्धमे भारतीय जनतापार्टीकेँ, प्रधानमंत्री तथा उप-प्रधानमंत्रीकेँ एहि कार्यक लेल मिथिलावासी अनन्त कालधरि स्मरण करैत रखतनि । लोकसभाक सत्रक ओहिखेप अंतिम तिथि २२ दिसम्बर २००३ केँ यदि मैथिली संविधानमे सएम संशोधनक द्वारा सम्मिलित नहि होइत तँ निकट भविष्यमे ई कार्य होयब असंभव भऽ जाइत । मुदा २२ दिसम्बर २००३ केँ लोक सभा आ ओकर दोसरे दिन राज्य सभा मे संशोधन विधेयक सर्वसम्मतिसँ पारित भऽ गेल । भारत सरकार गृहराज्यमंत्री अथवा स्वयं गृहमंत्री अधिक काल लोकसभामे बजैत छलाह जे डोगरी, राजस्थानी आओर किछु भाषाकेँ संविधानक अष्टम अनुसूचीमे सम्मिलित कयल जायत । मुदा ओहिमे मैथिलीक नामक उच्चारणसँ ओ लोकनि पूर्णतया परहेज करैत रहलाह । हमरालोकनि जखन एहिबातकेँ उठौलहुँ, तँ कहल गेल जे एको गोट मैथिली भाषी सांसद मैथिलीक प्रश्न उठौनिहार नहि छथि । ई तथ्य ठीके छल ।

मुदा जखन एक गोट एहेन दल जे केन्द्रमे सरकारमे सबसँ पैघ हो आ प्रधानमंत्री ओहीदलक होथि, मैथिलीक प्रश्नपर अनुकूल भेलैक तँ संसदक सात-आठ गोट सदस्य मैथिलीक पक्षमे अपन नाम दर्ज करौलनि । ओहिमे बँगला भाषी सांसद श्रीसुदीप बन्द्‍योपाध्यायक संग सर्वश्री रामविलास पासवान, रामचद्र पासवान, पप्पू यादव, संजय पासवान तथा रघुनाथ झाक नाम विशेषरुपसँ उल्लेखनीय अछि । डॉ. सी. पी. ठाकुर तँ एहि यज्ञक सर्वोच्च पुरोधे छथि । विकासमंचक दिससँ धन्यवाद दैत छियनि ।

भारतमे तीन गोट प्रधानमंत्री भाषा ओ साहित्यक प्रति संवेदनशील ओ प्रख्यात साहित्यकार भेलाह । पं. जवाहरलाल नेहरु ओहिमे सर्वोच्च छलाह । ओ मैथिली भाषाकेँ साहित्य अकादेमीमे सम्मिलित करबाक पृष्ठभूमि तैयार कऽ देलनि आ तें मैथिली ओतय पहुँचल । दोसर बहुभाषाविद्‍ आ साहित्यकार प्रधानमंत्री भेलाह पी. वी. नरसिंहाराव । हुनका एहि कार्यक लेल हमरा लोकनि कहियो नहि सकलियनि । प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पं. जवाहरलालक पदचिह्न पर चलैत छलाह आ स्वयं कवि आ साहित्यकार छलाह । ओ मैथिलीकेँ उत्थानक मार्गमे अन्तिम मंजिल पर पहुँचा देलनि ।

एहिबेरक प्रयासक क्रममे विद्यापति सेवा संस्थानक सविच श्री वैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’ जीक नाम उल्लेखनीय अछि । ओ एहि बेरक सब प्रतिनिधि मंडल मे सबसँ अधिक सक्रिय छलाह तथा एक गोट बहुत मोट प्रकाशित स्मारपत्र प्रधानमंत्री आ उप-प्रधानमंत्रीकेँ समर्पित कऽ हुनकालोकनिकेँ प्रभावित करबामे सफल भेलाह ।

मैथिली उत्थानक मार्ग एतबे गोटेक संघर्ष नहि देखने अछि । सूची बहुत नमहर अछि । बीसम शताब्दीक पाँचम दशकक मध्य मिथिलाकेशरी जानकी नन्दन सिंह कलकत्ताक कल्याणी काँग्रेसमे कतोक अपन अनुयायीक संग मैथिलीक मान्यता ओ भाषाधार प्रान्तक क्रममे मिथिला राज्यक स्थापनाक लेल कांग्रेस ‘आलाकमान’ तथा प्रधानमंत्रीकेँ स्मारपत्र देबाक लेल रहथि । रस्तेमे आसनसोलमे पुलिस द्वारा पकड़ा गेलाह आ जहल मे बन्द भऽ गेलाह । जानकीबाबू सन पुरान कांग्रेसी नेताकेँ १९५६ ई. कांग्रेस छोड़ि रामगढ़क राजा कामाख्या नारायण सिहंक जनतापार्टी मे सम्मिलित होबय पड़लनि ।

डॉ. लक्ष्मण झा १९४८ ई. मे लंडन सँ ‘मिथिला एण्ड मगध’ विषय पर पीएच. डी. डिग्री पाबिकऽ फिरलाक बादसँ जीवनक अन्तिम कालधरि मैथिली ओ मिथिलाक विकासक लेल संघर्ष करैत रहलाह । ‘विचार चिंतामणि’ मे हुनक एहि प्रकारक मैथिली भाषामे समस्त निबन्ध संकलित कएल गेल अछि । हुनक पुस्तक तँ अंगरेजी, मैथिली ओ हिन्दी कतोक भाषा मे प्रकाशित अछि तथा साठि गोट पांडुलिपि प्रकाशनक बाट ताकि रहल अछि । तेँ एहि अवसर पर डॉ. लक्ष्मण झाक स्मरण करब आवश्यक अछि ।

पटनाक ‘चेतना समिति’ पूर्वमे यात्रीजी आ बाद मे पं. जयनाथ मिश्र एवं श्री विजय कुमार मिश्रक नेतृत्वमे मैथिली भाषाक सेवा १९५४ ई. मे स्थापनाक दिनसँ आइधरि निरन्तर कऽ रहल अछि ।

बिहारक पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कर्पूरी ठाकुरक मैथिलीकेँ संविधानमे सम्मिलित करबाक लेल जे कार्य छनि, ओ सर्वेपरि छनि । १९५२ ई. सँ १९६७ ई. धरि विधान सभाक एहन कोनो सत्र नहि भेल होयत, जाहिमे मैथिलीक विषयक ओ प्रश्न नहि उठौने हेताह अथवा बहस नहि कयने हेता । अन्तमे २२ दिसम्बर १९७७ ई. केँ अपन मुख्यमंत्रीत्व कालमे भारत सरकारक तत्वकालीन विधिमंत्री श्री शांति भूषणकेँ एक पत्र द्वारा मैथिली केँ भारतीय संविधानक अष्टम अनुसूचीमे सम्मिलित करबाक लेल जे पत्र लिखने छलाह, से मैथिली भाषा ओ साहित्यक लेल एक गोट ऐतिहासिक दस्तावेज अछि । एहि अवसर पर हम बिहारक पूर्व मुख्यमंत्री केदार पाण्डेयक स्मरण करब आवश्यक बुझैत छी जे अपना मुख्यमंत्री कालमे १९७२ ई. मे मैथिलीकेँ बिहार लोक सेवा आयोगक परीक्षामे वैकल्पिक विषयक रुपमे सम्मिलित कयलनि, जे श्री लालू प्रसाद यादवक आदेश सँ हटि गेल ।