आओ फिर से दिया जलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ.

अटल बिहारी वाजपेयी की अन्य कविताएं

  • क़दम मिला कर चलना होगा
  • दूध में दरार पड़ गई
  • ऊँचाई
  • मैंने जन्म नहीं मांगा था!
  • मौत से ठन गई

आओ फिर से दिया जलाएँ&rdquo पर एक विचार;

टिप्पणी करे