निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन, पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
हमने इक शाम चराग़ों से सजा रक्खी है, शर्त लोगों ने हवाओं से लगा रक्खी है.
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